STUDY WITH BIPIN

प्रमुख अंतरराष्ट्रीय पर्यावरणीय सम्मेलन


अंतरराष्ट्रीय प्रमुख पर्यावरणीय कार्यक्रम (Paryavaran Sammelan)


1.स्टॉकहोम सम्मेलन  (5 जून 1972)-


5 जून 1972 को पर्यावरण सुरक्षा हेतु विश्वव्यापी स्तर पर प्रथम प्रयास किया गया था।
संयुक्त राष्ट्र संघ के तत्वावधान में इस वर्ष स्टॉकहोम में एक सम्मेलन आयोजित हुआ और संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम(UNEP) का आरंभ हुआ। इसी सम्मेलन में ही 5 जून को ‘विश्व पर्यावरण दिवस’ के रूप में मनानें का निर्णय लिया गया।इस सम्मेलन को ‘स्टॉकहोम समझौता’ या ‘प्रथम मानव पर्यावरण सम्मेलन’ के नाम से भी जाना जाता है।


अंतरराष्ट्रीय पर्यावरण चेतना एवं पर्यावरण आंदोलन के प्रारंभिक सम्मेलन के रूप में 1972 में संयुक्त राष्ट्रसंघ ने स्टॉकहोम (स्वीडन) में दुनिया के सभी देशों का पहला पर्यावरण सम्मेलन आयोजित किया था। इस अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में 119 देशों ने भाग लिया और एक ही धरती के सिद्धांत को सर्वमान्य तरीके से मान्यता प्रदान की गई।

Paryavaran sammelan,पर्यावरण सम्मेलन
Paryavaran sammelan


लगातार हो रहे पर्यावरणीय क्षरण, मौसम परिवर्तन एवं आपदाओं पर नियंत्रण हेतु पर्यावरण संरक्षण के संदर्भ में यह प्रथम वैश्विक प्रयास था। संक्षेप में पर्यावरण संरक्षण पर अंतरराष्ट्रीय ध्यान केंद्रित करने में स्कॉटहोम सम्मेलन का योगदान निम्नलिखित है -

1-मानवीय पर्यावरण पर घोषणापत्र प्रस्तुत करना,
2-मानवीय पर्यावरण के संरक्षण की दिशा में कार्ययोजना बनाए जाने की आवश्यकता पर बल,
3-संस्थागत, प्रशासनिक तथा वित्तीय व्यवस्थाओं को अपनाए जाने पर बल,
4-प्रति वर्ष विश्व पर्यावरण दिवस की घोषणा का प्रस्ताव,
5-पर्यावरण संरक्षण की दिशा में राष्ट्रीय स्तर पर कार्यवाही को सुनिश्चित करने की दिशा में कार्य,
6-पर्यावरण संरक्षण की दिशा में आगे बढ़ने के लिए पुनः दूसरे सम्मेलन बुलाए जाने का प्रस्ताव।


इसे भी देखें- शिक्षण कौशल( Teaching Skills) क्या हैं?


2.संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP)-

इसकी स्थापना 1972 में स्टॉकहोम सम्मेलन में की गयी थी,इसका मुख्यालय नैरोबी(केन्या) में हैं।यह संयुक्त राष्ट्र संघ की महत्वपूर्ण एजेंसी है जो सम्पूर्ण विश्व में पर्यावरण संरक्षण के लिए विभिन्न उपायो के लिए उत्तरदायी है। इसी एजेंसी द्वारा

‘ग्लोबल-500 पुरस्कार’ प्रदान किया जाता है।

वैश्विक पर्यावरण एजेंडा के निर्माण एवं जलवायु नीतियों के कार्यान्वयन के संदर्भ में यह शीर्ष वैश्विक पर्यावरण प्राधिकरण है जो संयुक्त राष्ट्र प्रणाली के भीतर कार्य करता है। 

संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम के निम्नलिखित कार्य हैं--

1-वैश्विक, क्षेत्रीय और राष्ट्रीय पर्यावरणीय परिस्थितियों और रुझानों का आकलन करना
2-अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय स्तर पर पर्यावरण संरक्षण उपायों को विकसित करना
3-पर्यावरण के विवेकपूर्ण प्रबंधन हेतु संस्थानों को सशक्त बनाना
4-सतत विकास के लिए ज्ञान और प्रौद्योगिकी के हस्तांतरण की सुविधा प्रदान करना
5-सिविल सोसाइटी और निजी क्षेत्र के भीतर साझेदारी और विचारों को प्रोत्साहित करना।

UNEP का मुख्य मत है वैश्विक पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए पर्यावरण नीति के विकास का संचालन करना तथा अन्तरराष्ट्रीय समुदाय एवं सरकारों का ध्यान ज्वलंत मुद्दों की तरफ आकर्षित करना जिससे उन पर कार्य हो सके। इसकी गतिविधियाँ बहुत से मुद्दों को समेटती हैं, जिसमें वायुमंडल, समुद्री एवं स्थलीय या पारितंत्र शामिल हैं।



3.साइट्स (C .I.T.E.S)-

Conservation on International Trade in Endangered Species
1973 में  वाशिंगटन सम्मेलन में ही इस पर सहमति बन गयी थी परंतु इसे 1976 से लागू किया गया। यह विश्व का सबसे बड़ा वन्य जीव संरक्षण समझौता है।यह जीव तथा उनके अंगों आदि के अंतरराष्ट्रीय व्यापार को प्रतिबंधित करता है।




4.वियना सभा (1985)-

ओज़ोन परत के संरक्षण के बचाव हेतु 1985 में वियना( आस्ट्रिया) में वियना सभा का आयोजन किया गया ,जो ओज़ोन क्षरण पदार्थों पर सम्पन्न प्रथम सार्थक प्रयास था।

इसे भी देंखें- शिक्षा मनोविज्ञान का अर्थ व परिभाषा



5.मॉन्ट्रियल समझौता(1987)-

यह प्रोटोकॉल, ओजोन परत को क्षीण करने वाले पदार्थों के बारे में (ओजोन परत के संरक्षण के लिए वियना सम्मेलन में पारित प्रोटोकॉल) अंतर्राष्ट्रीय संधि है जो ओजोन परत को संरक्षित करने के लिए चरणबद्ध ढंग से उन पदार्थों का उत्सर्जन रोकने के लिए बनाई गई है, जिन्हें ओजोन परत को क्षीण करने के लिए उत्तरदायी माना जाता
है। यह संधि हस्ताक्षर के लिए 16 सितंबर 1987 को खोला गया था और 1 जनवरी 1989 में प्रभावी हो गया । सके बाद इसकी पहली बैठक मई1989 में हेलसिंकीमें हुई । ओजोन परत के संरक्षण के लिए 16 सितम्बर को अंतर्राष्ट्रीय दिवस घोषित
किया गया।
ओज़ोन परत को सबसे ज्यादा नुकसान पहचानने वाला पदार्थ क्लोरोफ्लोरो कार्बन (CFC) हैं,इसके अतिरिक्त मिथाइल ब्रोमाइड,HCFC आदि है।



6.पृथ्वी शिखर सम्मेलन (1992)-

स्टॉकहोम सम्मेलन की 20वीं वर्षगाठ मनाने के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ ने ब्राजील  के शहर रियो-डी जेनरो में 1992 में पर्यावरण और विकास सम्मेलन आयोजित किया। इसे 'अर्थ सम्मिट' (Earth Summit) या प्रथम पृथ्वी शिखर सम्मेलन' भी कहा जाता है। इसमें सम्मिलित देशों ने ‘टिकाऊ विकास के लिए व्यापक कार्रवाई योजना ‘एजेंडा 21' स्वीकृत किया । इस सम्मेलन में सहमति के महत्वपूर्ण बिन्दु निम्न थे-

• विश्व के देश पृथ्वी के वायुमंडल के स्वास्थ्य और अखंडता को संरक्षित सुरक्षित और पुन: स्थापित करने के लिए विश्वव्यापी साझेदारी की भावना से सहयोग करेंगें। इस सम्मेलन में वैश्विक सुरक्षा कोष बनाया , जो ग्लोबल वार्मिग को रोकने,जैव विविधता, प्रदूषण, जल संरक्षण एवं अन्तर्राष्ट्रीय संसाधनों के नियंत्रण में सहयोग देगा।


पृथ्वी सम्मेलन से 5 वर्ष पहले 1987 में ‘आवर कॉमन फ्यूचर- (हमारा सांझा भविष्य) नाम से ब्रटलैण्ड रिपोर्ट का प्रकाशन हुआ इस रिपोर्ट में इस बात पर बल दिया गया कि वर्तमान विकास का मॉडल आगे जाकर टिकाऊ साबित नहीं होगा एवं इससे हमारा भविष्य खतरे में पड़ जाएगा।

ब्रटलैण्ड रिपोर्ट द्वारा बताए गए भविष्य के खतरे को प्राथमिकता प्रदान करते हुए संयुक्त राष्ट्र महासभा के द्वारा 22 दिसम्बर, 1989 को दो प्रस्ताव पारित किये गए। इन प्रस्तावों में 1992 में ब्राजील में एक सम्मेलन को बुलाया जाने का आग्रह भी शामिल था। पर्यावरण एवं विकास पर संयुक्त राष्ट्र द्वारा आयोजित इस शिखर सम्मेलन को ही 'पृथ्वी सम्मेलन' या ‘रियो सम्मेलन’ के नाम से जाना जाता है।

 यह शिखर सम्मेलन ब्राजील की राजधानी रिओ डि जेनेरियों में 3 जून 1992 से 14 जून 1992 तक चला जिसमें 182 देशों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया।


पृथ्वी सम्मेलनके दौरान निम्न विचारणीय विषय विद्यमान थे--
1-विश्व को प्रदूषण से बचाने के लिए वित्तीय प्रबन्ध
2-वनों का प्रबंधन
3-संस्थागत प्रबंधन
4-तकनीक का हस्तांतरण
5-जैविक विविधता
7-सतत् विकास।
8-पृथ्वी सम्मेलन की उपलब्धियाँ

पृथ्वी सम्मेलन के दौरान 2 दस्तावेजों (एजेंडा-21 और रियो घोषणा) को प्रस्तुत किया गया तथा इसमें तीन महत्वपूर्ण कन्वेंशन ( यूएनएफसीसीसी, जैव विविधता और मरुस्थलीकरण पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन) को जन्म दिया ।

एजेंडा-21-


एजेंडा- 21 पर्यावरण एवं विकास के संदर्भ में एक अन्तर्राष्ट्रीय दस्तावेज है जिसे सम्मेलन में उपस्थित 182 देशों के प्रतिनिधियों द्वारा सर्वसम्मति से स्वीकार किया गया। यद्यपि एजेंडा-21 सदस्य राष्ट्रों पर बाध्यकारी नहीं है फिर भी राष्ट्रों से यह अपेक्षा की गई कि अपनी भावी विकास की नीतियां एजेंडा-21 की नीतियों के अनुरूप निर्माण करेंगे। एजेंडा-21 पारिस्थितिकी एवं आर्थिक विकास के संदर्भ में संतुलन स्थापित करते हुए निम्न विषयों पर बल प्रदान करता है -

गरीबी
उपभोग के ढंग
स्वास्थ्य
मानवीय व्यवस्थापन
वित्तीय संसाधन
प्रौद्योगिकीय उपकरण

एजेंडा-21 में निहित घोषणाओं के अनुपालन हेतु 1993 में एक आयोग का गठन किया गया जिसे सतत् विकास पर आयोग कहा गया। इस आयोग ने मई, 1993 से कार्य करना शुरू कर दिया।

7-जैव विविधता पर अंतरराष्ट्रीय कन्वेंशन (Convention on Biological Diversity-CBD)


जैव विविधता पर अंतरराष्ट्रीय कन्वेंशन (CBD) की स्थापना 1992 में आयोजित हुए रियो डी जनेरियो में पृथ्वी शिखर सम्मेलन के दौरान हुई थी। इस संधि को भविष्य की आवश्यकताएं एवं वर्तमान जरूरतों को पूरा करने के क्रम में ‘सतत विकास की रणनीति’ पर बल देते हुए अपनाया गया।

 सीबीडी के द्वारा लोगों की आजीविका एवं वैश्विक आर्थिक विकास के मध्य सामंजस्य स्थापित करते हुए जैव विविधता को कायम रखने की प्रतिबद्धता व्यक्त की गई। इस संधि पर 193 सरकारों द्वारा इस पर हस्ताक्षर किए गए थे।

भारत इस संधि का एक पक्षकार देश है।

जैव विविधता पर अंतरराष्ट्रीय कन्वेंशन (CBD) कानूनी रूप से बाध्यकारी एक अंतरराष्ट्रीय संधि है। जैव विविधता पर अंतरराष्ट्रीय कन्वेंशन के तीन प्रमुख लक्ष्य है :-

1-जैव विविधता का संरक्षण;
2-जैव विविधता के घटकों का सतत उपयोग;
3-आनुवांशिक संसाधनों से उत्पन्न होने वाले लाभ का न्यायोचित और समान बंटवारा;

CBD प्रत्येक 2 वर्षों में सभी सदस्य देशों के COP सम्मेलन को आयोजित करता है। इन सम्मेलनों में जैव विविधता से जुड़े नए मुद्दों की पहचान, जैव विविधता के नुकसान और लक्ष्यों को हासिल करने की दिशा में उठाए गए कदमों की समीक्षा की जाती है।

जैव विविधता पर अंतरराष्ट्रीय कन्वेंशन (CBD) के द्वारा आयोजित सम्मेलनों में दो प्रोटोकॉल बहुत ही महत्वपूर्ण है।

1. कार्टाजेना प्रोटोकॉल:-

2000 में जैव विविधता पर बुलाए गए कन्वेंशन में कार्टागेना प्रोटोकोल को स्वीकार किया गया और 11 सिंतबर 2003 से लागू हुआ। इस प्रोटोकॉल के तहत आधुनिक जैव प्रौद्योगिकियों के परिणामस्वरूप उत्पन्न हुए सजीव संवर्द्धित जीवों (living modified organisms LMOs) के सुरक्षित हैंडलिंग, परिवहन एवं उपयोग को सुनिश्चित किया गया जिससे जैव विविधता एवं मानव स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़े।

2. नागोया प्रोटोकॉल:-

आनुवंशिक संसाधनों तक सभी देशों की पहुंच एवं लाभों में साझेदारी के लिए नागोया प्रोटोकॉल को अपनाया गया। इस प्रोटोकॉल को जापान के नागोया में आयोजित हुए जैव विविधता पर आयोजित हुए 10वें कोप, 2010 में अंगीकार किया गया।

नागोया प्रोटोकॉल 12 अक्टूबर, 2014 से प्रभावी हुआ। भारत इस प्रोटोकॉल को हस्ताक्षरकर्ता देश है।

 नागोया प्रोटोकोल के साथ-साथ इस सम्मेलन में जैव विविधता पर दबाव को कम करने एवं इसके लाभों को सभी हितधारको में समान रूप से बांटने हेतु आईची लक्ष्यों को भी स्वीकार किया गया। आईची लक्ष्यों को मुख्य रूप से पांच भागों में विभाजित किया जा सकता है;

1-जैव विविधता नुकसान के कारणों को समझना,
2-जैव विविधता पर प्रत्यक्ष दबाव को कम करना व सतत उपयोग को बढ़ावा देना,
3-पारितंत्र, प्रजातियों एवं अनुवंशिक विविधता की सुरक्षा कर जैव विविधता स्थिति में सुधार लाना,
4-जैव विविधता एवं पारितंत्र सेवाओं से लाभों का सभी में संवर्द्धन तथा
5-साझीदारी नियोजन, ज्ञान प्रबंधन तथा क्षमता निर्माण के द्वारा क्रियान्वयन में वृद्धि।

7.क्योटो प्रोटोकॉल (1997)-

संयुक्त राष्ट्र संघ की पहल पर ग्लोबल वार्मिग और जलवायु परिवर्तन की चुनौती से निपटने के लिए 1992 में ‘यूनाइटेड नेशंस फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज’(UNFCCC) अस्तित्व में आया।

ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन में अनियंत्रित वृद्धि को रोकने के लिए बनाया गया था।11 दिसम्बर1997 को हुए (UNFCCC) के तीसरे सम्मेलन अर्थात (Cop) के तीसरे सत्र में क्योटो प्रोटोकॉल को स्वीकार किया गया।

-क्योटो प्रोटोकॉल 16 फरवरी 2005 को पूर्ण रूप से लागू किया गया।
-भारत ने अगस्त 2002 में क्योटो प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर किया।

―--------------------------------------------------------------
उम्मीद करते हैं ये लेख आपको पसंद आया होगा,इसे अपने दोस्तों के साथ शेयर जरूर करें, इस टॉपिक की पूरी वीडियो आप हमारे YouTube चैनल पर नीचे दिए लिंक पर क्लिक करके देख सकते हैं।
और हमारे YouTube चैनल को जरूर सब्सक्राइब करें।
धन्यवाद-
यूट्यूब वीडियो देखने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें।

-----------------------------------------------------------------



महत्वपूर्ण तथ्य-

--भारत मे प्रोजेक्ट टाइगर की शुरुआत 1973 में की गयी।
--चिपको आंदोलन श्री सुन्दरलाल बहुगुणा व श्री चांडी प्रसाद भट्ट द्वारा 1973 में उत्तराखंड के चमोली जिले से प्रारंभ किया गया।
--भारत मे पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986 में लागू किया गया।
--भारत मे वन्य जीव संरक्षण अधिनियम 1972 में लागू किया गया।
--भारत मे वन संरक्षण अधिनियम 1980 में लागू किया गया।
-- जल प्रदूषण व निवारण अधिनियम 1974 में पारित किया गया।
--------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------

SHARE

Milan Tomic

Hi. I’m Designer of Blog Magic. I’m CEO/Founder of ThemeXpose. I’m Creative Art Director, Web Designer, UI/UX Designer, Interaction Designer, Industrial Designer, Web Developer, Business Enthusiast, StartUp Enthusiast, Speaker, Writer and Photographer. Inspired to make things looks better.

  • Image
  • Image
  • Image
  • Image
  • Image
    Blogger Comment
    Facebook Comment

0 comments:

एक टिप्पणी भेजें

If you have any doubt.please let me know